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हम में ही अहं...
सारा जग ये बदनाम है,
उसमें अपना भी एक नाम है।
क्या करें हम, क्या करें,
कुछ तो बोलो क्या करें।
साथ के साथी थे, दो - चार
सब सब तो मिलते ही बिछड़ गया।
किसी की यादें हमे ना आई,
मग्न ये हम तो अपने गुमान में।
कौन कहता है कि जालिम जमाना है,
स्वरूप से कभी मिला ही नहीं।
इतना अंधा कैसे बना मै,
नेत्रदान तो कभी किया ही नहीं।
संत कबीर से शायर गालिब तक,
इन सबों ने है, ये बात कही।
क्यूँ फ़ना होने के कगार पर ही,
लगती है ये बात सही।
अल्टीमेट राइटिंग गाइड।
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